चला कुछ सिलसिला ऐसा, उन बिछड़ों को पाने का,
भरोसा कर लिया मैंने तुम्हारे लौट आने का।
आये चार दिन को तुम, बहाना था मनाने का,
तुम्हें हक़ दे दिया मैंने, मेरा फिर दिल दुखाने का।
देकर वास्ता मुझको उन रूठे ज़मानों का,
पता फिर ले लिया मुझसे मेरे दिल के ठिकानों का।
भरोसा फिर किया मैंने, न देखा थे वही, तुम तो,
मौका फिर दिया तुमने तो खुद को आज़माने का।
शुरू फिर सिलसिला है अब, नयी यादें भूलाने का,
तुम्हें न याद करने को, भुलाना उन फ़सानों का
कहा माना नहीं मैंने, कहा दिल ने, "संभल जा" तो,
सज़ा ख़ुदको है दी मैंने, तुम्हें बस नाम बहाने का।
भरोसा फिर किया मैंने, न देखा थे वही, तुम तो,
मौका फिर दिया तुमने तो खुद को आज़माने का।
टूटा दिल मेरा फिर से, भरोसा भी मेरा ही तो;
कुसूर इसमें तुम्हारा क्या, मैं मारा हूँ ज़माने का।