November 12, 2014

जो छू कर गुज़रती है मुझे


जो छू कर गुज़रती है मुझे, हवा,
आँचल तेरा भी छू जाती तो होगी।
के याद करता है तुझे हर घड़ी कोई,
कानों में तेरे कह जाती तो होगी।

सिहर उठता हूँ बारिश की जिन चंद बूँदों से मैं,
तेरे दामन में भी मोती यादों  के भर जाती तो होंगी।
जो तड़प के बरस उठती हैं आँगन में मेरे, घटा,
आँगन तेरा भी अश्को से भिगो जाती तो होंगी।

काँप उठती है जिनके छूने से कायनाथ मेरी,
होठों को तेरे भी यादें वो थरथराती तो होंगी।
जो सिसकती, मचलती हैं मेरे आसमाँ में बिजलियाँ,
रोशन तेरे घर को कहीं कर जाती तो होंगी।

जो जलाती, है चिराग निगाहों में उम्मीद के मेरी, चांदनी,
तेरे दिल को भी सुकूँ दे जाती तो होगी।
जिनसे रौशन है हर घड़ी दुनिया मेरी, यादें ,
चिराग दिल में तेरे भी जला जाती तो होंगी।

4 comments:

  1. जो सिसकती, मचलती हैं मेरे आसमाँ में बिजलियाँ,
    रोशन तेरे घर को कहीं कर जाती तो होंगी।

    वाह ! बहुत खूब ! संपूर्ण कविता का शारांश इन दो पंक्तियों में सिमट आया है। कहीं - कहीं टाइप मैं गलतियाँ हो गयी हैं यदि ध्यान दें तो प्रस्तुति और भी अच्छी उभरेगी !

    साभार

    http://utpalkant.blogspot.in

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    1. तारीफ़ के लिए धन्यवाद, उत्पल जी। ये जो टाइपिंग की ग़लतियाँ लग रही हैं न, दरअसल ये browser या font की वजह से नज़र आ रही हैं।

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  2. straight from heart... want to see that heart that undergoes so many emotions in a single life.

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    1. I couldn't thank you enough for anything...all I'd say is, just one life to live and love and let go and live...a vast spectrum brings the rainbow aglow!

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