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May 4, 2020

आज यूँ ही

आज यूँ ही बैठे बैठे याद उनकी चली आयी है।
फिर मुसकुराहट वो प्यारी लौटी है,
फिर आँख मेरी भर आयी है।
यूँ तो नज़र में रहता है उनका चेहरा हर पहर,
बात भी दिल में होती है उनसे शाम सहर।
मग़र आज शायद बात कुछ ख़ास हो आयी है,
ज़िक्र उनका कुछ ख़ास हुआ है दिल की गहराई में
जो आज यूँ ही बैठे बैठे याद उनकी चली आयी है।
फिर मुसकुराहट वो प्यारी लौटी है,
फिर आँख मेरी भर आयी है।
आँख मेरी भर आयी है।।

February 14, 2020

ये अधूरा सा जहाँ

तुमसे बिछड़े हम जो कल, मिल सकें फिर कहाँ।

साथ बीते थे जो पल, अब नहीं, पर कशिश उनकी बाक़ी है।
साथ बीते थे जो, कुछ पल, चाह उनकी अब भी बाक़ी है।
महक साथ बीते हुए हर पल की, हर तरफ़ बाक़ी है।

पर हो नहीं जो इसमें तुम, है अधूरा बहुत ये जहाँ!
तुमसे बिछड़े हम जो कल, मिल सकें फिर कहाँ।

परे हमसे बहुत हो तुम, है अधूरा बहुत ये जहाँ!

June 7, 2019

Our Sun -- An Elegy


Cold!
Cold was thy brow to touch,
No warm hand anymore,
For us to clutch!

No sun did set,
Nor rose a moon.
We came to thee but
Thou hath left er too soon!

We grope for thee,
Oh, Thou art gone!
Er we saw,
Thou had passed on!

All hope dashed
It's now just tears
Unhealed hearts,
For years...and years!

Oh, come back Thee!
We pine, we long.
Come sing to us
Just one more song!

Sweet smiles no more.
No more thy touch!
No warm hand
For us to clutch!

No light anymore
No peace, just tears.
No light anymore
Our Sun, thou hast set!

September 20, 2014

दाग़ दिल पे लिया है मैंने


ग़म तेरे न आने के मिला, तो;
शिक़वा तुझसे नहीं ज़िन्दगी से किया मैंने।
दिलो-दायर और के हुए तेरे;
ये भी ख़ामोश खड़े सहा है मैंने।

के तू रुस्वा न हो ज़माने में आह से भी मेरी;
यूं दर्द बेवफ़ाई का तेरी जज़्ब किया है मैंने।
अश्क़ आँख से न एक भी गिरने पाए;
रस्म-ए-उल्फ़त को इस तरह जिया है मैंने।

न  हैराँ उसके जाने से, न परेशाँ तू;
दिल पे फ़ौलाद तेरे रख दिया है मैंने।
के पाक रूहो-कफ़न रहे तेरा, शीन;
दाग़ दामन पे नहीं दिल पे लिया है मैंने।

September 14, 2014

रोक ले आज...

रोक ले अश्क़ मेरे, के न
बाह जाए साथ इनके, आँखों से मेरी।
रोक ले आज इन्हें, के
रह पाये उम्रभर निगाहों में मेरी।
थाम दामन में इन्हें, के
है इनमें ही तू।

रह पायेगा उम्रभर डूबकर इनमें,
होगी ग़र इन आँखों में वही झील सी नमी।
थाम ले आज इन्हें, के
न बह जायें अश्क़ आँखों से सभी।
रोक ले आज इन्हें, के
रह पाये निगाहों में मेरी तू ।

लौटता नहीं बह जाए सैलाबों में जो,
लौट भी आयें ग़र सैलाब वही।
रोक ले आज…
थाम बढ़के इन्हें, के
चल निकला है साथ इन सैलाबों के ही तू।    

July 2, 2010

They lie too deep

Thoughts oh so fragile,
from deep within
surface unbeckoned
at unsaid times.
Like effervescence,
oh! hard to hold!
so out of reach,
can't try and touch!

Thoughts oh so fragile,
from deep within
come and go
as they please!
They smile our smile,
and cry our tears
on stealthy toes
come rob our sleep!

Thoughts oh so fragile,
from deep within...