लगता तेरा कारवाँ कुछ उठता हुआ सा है, मुझको।
तुझको है इंकार मग़र...
तुझसे बढ़कर शायद, अब मैं जान गया हूँ तुझको।
नदी, हवाएं, पँछी और बादल, कब रोके से रुकते हैं
तुझको है इंकार मग़र...
तुझसे बढ़कर शायद, अब मैं जान गया हूँ तुझको।
नदी, हवाएं, पँछी और बादल, कब रोके से रुकते हैं
सैलानी तुझ से ये सारे, भोर भए चल उठते हैं;
न आह कोई, और न कोई आँसू रोक तुझे अब पायेगा।
बस इतना वादा देते जाना, न लौट इधर फिर आएगा।
न आँसू मेरे, और न ये बाहें, बस अब बढ़कर रोकेंगे तुझको;
लगता तेरा कारवाँ कुछ उठता हुआ सा है, मुझको।
क्या होगा जो फिर एक बार चला तू जाएगा;
कुछ यादें नई नई सी, कुछ कविताएँ दे जाएगा।
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