August 23, 2014

ख्वाब था शायद, ख्वाब ही होगा

यादोँ के उस मौसम से,
कोई आया, मेरे पास में बैठा।
एक पुराना गीत वो लाया, और वही पुरवाई भी,
नज़र को थामे नज़रो से उसने, बीती बातें दोहराईं भी।

साँझ की बेला, और हम दोनोँ,
और मन में वही शहनाई सी।
मेरी बात सुनी भी उसने, अपनी बात सुनाई भी।
यादोँ के उस मौसम से,
कोई आया,मेरे पास में बैठा! 

आज पुराना यादोँ का मौसम, बरसा, मैं मुस्काई भी।
आँख झपकते मैनें पाया फिर वही तनहाई  थी!
ख़ाली था घर का हर कोना, और
वही ग़म की घटा सी छाई थी। 
वक्त  के शीशे से गर्द सी उड़कर 
याद चली कोई आयी थी!

ख्वाब था शायद, ख्वाब ही होगा
यादोँ के उस मौसम से,
कोई आया, मेरे पास में बैठा।

एक ज़माना था कुछ ऐसा दिल में बजी शहनाई थी
यादोँ के उस मौसम में ,
कोई आया था, मेरे पास था बैठा
नज़र को थामे नज़रो से उसने, दिल की बात सुनाई थी
नज़र को थामे नज़रो से उसने, दिल को राह दिखाई थी।

ख्वाब था शायद, ख्वाब ही होगा
यादोँ के उस मौसम से,
कोई आया, मेरे पास में बैठा।


2 comments:

  1. On a cold late afternoon, listening to the rain, drinking hot chai, I decided to read your poem....
    And what a writing! Straight from your heart, touching my heart.... Bless you!

    -Radhika Di

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  2. Thank you, Di;
    This means so much to me! :)

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