'फिर मिलेंगे कभी' तू ने कह भी दिया
और पलट के कभी याद भी न किया
बड़ी देर मैं, ताकता उस तरफ,
रास्ता, खड़ा तेरा देखा किया
संग चली तो मग़र, चली दो कदम
बीच राह छोड़ मुझसे किनारा किया
न शिकवा कभी कोई मैंने किया,
न तुझको कभी मैंने रुसवा ही किया.
चल पड़ा मैं (भी), निकल आगे बढ़ा,
राह तकता भी कब तक यूँ खड़ा ही खड़ा.
न अर्ज़ी, न ही सुनवाई कोई,
तू तो ए ज़िन्दगी बन बैठी खुदा!
'फिर मिलेंगे कभी' था तू ने कहा,
पर पलट के कभी याद तो न किया.
और पलट के कभी याद भी न किया
बड़ी देर मैं, ताकता उस तरफ,
रास्ता, खड़ा तेरा देखा किया
संग चली तो मग़र, चली दो कदम
बीच राह छोड़ मुझसे किनारा किया
न शिकवा कभी कोई मैंने किया,
न तुझको कभी मैंने रुसवा ही किया.
चल पड़ा मैं (भी), निकल आगे बढ़ा,
राह तकता भी कब तक यूँ खड़ा ही खड़ा.
आज कहती है सब थी मेरी ख़ता,
और उसकी मुझे तू ने दी थी सज़ा.न अर्ज़ी, न ही सुनवाई कोई,
तू तो ए ज़िन्दगी बन बैठी खुदा!
'फिर मिलेंगे कभी' था तू ने कहा,
पर पलट के कभी याद तो न किया.
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