हर स्टेशन पे उतरकर यूँ ही खड़े होना,
गर्मी में जा जा वो मुँह धोना.
वो ऊंघना दिन भर, बस और सोना,
वो नापना क़दमों से ट्रेन का हर कोना!
वो चाय का आना, वो बच्चों का रोना,
याद आ गया सब आज यूँ ही अचानक...
वो दरवाज़े पे ट्रेन के घंटों खड़े होना!
वो खाने की खुशबुएँ जो थी उड़ती
तो खाने को घर के कुछ और तरसना!
वो गोलाई में जब ट्रेन थी मुड़ती
उसे देख बच्चों का वो शोर करना
वो दूर शहरों की बत्तियाँ चमकती,
और सुनसान जंगलों से भी निकलना.
याद आ गया सब आज यूँ ही अचानक...
वो ताली बजाते हिजड़ों का गुज़रना!
गर्मी में जा जा वो मुँह धोना.
वो ऊंघना दिन भर, बस और सोना,
वो नापना क़दमों से ट्रेन का हर कोना!
वो चाय का आना, वो बच्चों का रोना,
याद आ गया सब आज यूँ ही अचानक...
वो दरवाज़े पे ट्रेन के घंटों खड़े होना!
वो खाने की खुशबुएँ जो थी उड़ती
तो खाने को घर के कुछ और तरसना!
वो गोलाई में जब ट्रेन थी मुड़ती
उसे देख बच्चों का वो शोर करना
वो दूर शहरों की बत्तियाँ चमकती,
और सुनसान जंगलों से भी निकलना.
याद आ गया सब आज यूँ ही अचानक...
वो ताली बजाते हिजड़ों का गुज़रना!
wow beautiful....mujhe bhi yaad aa gaya train ka siitii bajaanaa
ReplyDelete"वो दूर शहरों की बत्तियाँ चमकती,
ReplyDeleteऔर सुनसान जंगलों से भी निकलना."
वाह,बहुत खूब !
@Avi:shukriya!
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